वाकई अखबार नहीं आंदोलन है प्रभात ख़बर, ’सच्चाई’ पर भी भला किसी को जिताया जाता है!
आंदोलनकारी पत्रकारिता का दंभ भरनेवाले अखबार प्रभात खबर के एक ब्लंडर ने सोशल मीडिया में उसकी भद्द पिटवा दी है. जन सरोकार की पत्रकारिता का दावा करने वाले प्रभात खबर में हेडलाइन को आकर्षक बनाने के चक्कर में ऐसी गलती हो गई जिसने उसकी ब्रांड इमेज की किरकिरी करा दी है.लगता है प्रभात खबर के संपादक आजकल वेकेशन पर हैं तभी तो किसी को समझ ही नहीं आ रहा कि हेडलाइन कैसी होनी चाहिए.
दरअसल प्रभात खबर ने अपने पुलआउट लाइफ एट पटना के 10 अक्टूबर के अंक में गांधी मैदान के दशहरे की खबर में हेडलाइन लिखी ‘सच्चाई पर जीत के गवाह बने सवा लाख लोग’ . अब जरा सोचिए कि इस टाइटल से क्या समझ में आता है और खबर का शीर्षक क्या स्पष्ट कर रहा है.असल में सच्चाई पर किसी को जीत दिलाने से तो हमारे शास्त्रों ने ही मना किया है. हम तो बचपन से ही ये पढ़ते,लिखते,सुनते,फिल्मों में देखते आ रहे हैं कि अच्छाई की जीत होती है.सत्य परेशान होता है,पराजित नहीं होता.ऐसे में प्रभात खबर की इस हेडलाइन ने सोशल मीडिया में अखबार की फजीहत करा दी है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इतनी बड़ी गलती होने के बाद भी प्रभात खबर का प्रबंधन सोया हुआ है. कहा तो यह भी जा रहा है कि लाइफ एट पटना के वर्तमान इंचार्ज की यह गलती संपादक ने इग्नोर कर दी है. संपादक वर्तमान लाइफ इंचार्ज की हर गलती को नजरअंदाज कर देते हैं क्योंकि वो उनका खास है. जबकि ये भी खबर मौजूं है कि लाइफ एट पटना के इंचार्ज अपनी घर वापसी में लगे हुए हैं और भास्कर प्रबंधन के कई वरिष्ठ अधिकारियों से दो-तीन बार मुलाकात भी कर चुके हैं. बहरहाल मसला जो भी हो, लेकिन मुंह देख कर काम करने की प्रवृत्ति से प्रभात खबर की विश्वसनीयता पर इस न्यूज की हेडलाइंस ने एक बड़ा सवाल तो उठा ही दिया है. आखिर लाइफ एट पटना के इंचार्ज की गलतियों को संपादक इतना नजरअंदाज क्यों कर रहे हैं?