सांस्कृतिक विरासत के संग-संग, व्यक्ति की निजी पहचान भी उसकी मातृभाषा से है। लेकिन यदि मातृभाषा की ही पहचान संकट में आ जाए फिर? ट्विटर पर दो खबरनवीसों के बीच हुई संवाद में ऐसा ही कुछ देखने को मिला है।
टीवी9 भारतवर्ष की मुंबई से रिपोर्टर शिवांगी ठाकुर ने अपनी मातृभाषा मैथिली में एक ट्वीट किया, रिप्लाई में एनडीटीवी के उमाशंकर सिंह से उनका बड़ा ही सुन्दर संवाद हुआ। लेकिन ट्वीट से पहले मैथिली भाषा के बारे में जान लेते हैं:
भारत की लगभग 5.6 प्रतिशत आबादी यानी लगभग 7-8 करोड़ लोगों की मातृभाषा मैथिली है और इस भाषा को बोलनेवाले भारत-नेपाल के विभिन्न हिस्सों सहित विश्व के कई देशों में फैले हैं।
हे नुनु अहूं बइच बचा क काज करू: उमाशंकर
मैथिली का प्रथम प्रमाण रामायण में मिलता है। त्रेता युग में मिथिला नरेश राजा जनक की राज्य भाषा मैथिली थी। मैथिली साहित्य भी समृद्ध है लगभग 700 इस्वी के आसपास से मैथिली की रचनाएं उपलब्ध हैं। विद्यापति जैसे महान कवि की रचनाएँ भी हैं।
वर्तमान काल में भारत की साहित्य अकादमी द्वारा मैथिली को साहित्यिक भाषा का दर्जा साल 1965 से हासिल है। 22 दिसंबर 2003 को भारत सरकार द्वारा मैथिली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भी शामिल किया गया था और नेपाल सरकार द्वारा मैथिली को नेपाल में दूसरे स्थान पर रखा गया है।
कोरोना से जंग जीत चुकी हैं शिवांगी:
दरअसल, कुछ दिनों पहले ही कोरोना से जंग जीत कर वापसी करने वाली पत्रकार शिवांगी ठाकुर ने ट्वीट किया "अहाँ सब अप्पन ध्यान राखू। समय बड्ड खराब चल रहल छई। कोनो से किछ उम्मीद नई राखा के चाही। सब अप्पन अप्पन सोच रहल छई। एहि लेल अहूं अप्पन स्वास्थ के बारे में सोचू।'
ट्वीट का रिप्लाई करते हुए बिहार से ही ताल्लुक रखने वाले जाने-माने पत्रकार और व्यंग्यकार उमाशंकर सिंह ने लिखा "हे नुनु अहूं बइच बचा क काज करू।" जिसके जवाब में शिवांगी ने लिखा अहूं बाजई छी मैथिली। सुन क मन हरहरा गेल।
गूगल ट्रांसलेट ने मैथिली भाषा को पहचानने से किया इंकार:
ट्विटर पर अनुवाद का विकल्प उपलब्ध है, ताकि ट्वीट में प्रयोग की गई भाषा से आप परिचित नहीं हैं तो आप डिफ़ॉल्ट भाषा में अनुवाद को पढ़ कर ट्वीट को समझ सकते हैं। लेकिन मैथिली भाषा के इस ट्वीट को अनुवाद करने पर अंग्रेजी में क्या लिखा हुआ आता है? स्क्रीनशॉट में देखिए...
इस अनुवाद ने आम का अनानास कर दिया। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि ट्विटर ने मैथिली भाषा के इस ट्वीट को हिंदी का ही ट्वीट बताया है।
यहां यह हो सकता है कि ट्विटर का अनुवाद पद्धति लिपि के आधार पर कार्य करता होगा। मैथिली भाषा का लिपि है मिथिलाक्षर/तिरहुता। लेकिन मैथिली भाषा की स्नातक से लेकर पी.एच.डी तक की पढ़ाई-लिखाई देवनागरी में ही होती है। परीक्षार्थी भी देवनागरी लिपि में ही परीक्षा देते हैं।
ट्विटर द्वारा मैथिली जैसी अहम भाषा को न पहचान पाना, सिर्फ भाषा के लिए ही नहीं बल्कि इस भाषा को बोलने वालों के लिए भी शर्म का विषय है।
ऐसे में Bihar4Media तमाम मैथिल सुधिजनों और इन ख्यातिप्राप्त पत्रकारों से अपील करता है कि मामले को संज्ञान में लें और क्या समस्या है इसकी तहकीकात करके ट्विटर को लिखें ताकि आगे से ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो।
कुछ ने बताया भोजपुरी तो कुछ पहचान ही नहीं पाए:
मैथिली भाषी तो दो मैथिल पत्रकार के बीच हुई इस संवाद को समझ गए लेकिन यूपी बिहार के ही कुछ लोग इस ट्वीट की भाषा को भोजपुरी बता रहे हैं तो कुछ अवाक हैं कि ये कौन सी नई भाषा ने जन्म ले लिया। @jha_saab1 नामक ट्विटर यूजर लिखते भी हैं कि Dear Non-Maithils pls @Google pr bharosa mat krna
मातृभाषा में मिले शिक्षा और भाषा को मिले पहचान: UNESCO
हर दो हफ़्ते में दुनिया से एक भाषा विलुप्त हो जाती है और उसके साथ ही उस भाषा से जुड़ा मानवीय इतिहास और सांस्कृतिक विरासत भी खो जाती है। इस विरासत को बचाने के लिए हर वर्ष 21 फ़रवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।
17 नवंबर, 1999 को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने इसे स्वीकृति दी थी। ताकि, भाषाई विविधता बनी रहे, मूल निवासियों/आदिवासियों की भाषाओं को संरक्षित रखा जा सके। विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।
शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मातृभाषा में:
हर मातृभाषा को पहचान मिलनी चाहिए और सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में उसका विशिष्ट हिस्सा होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है और मैथिली के साथ तो एकदम नहीं होता है। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मातृभाषा में नहीं होती है।
यूनेस्को के मुताबिक़ दुनिया में 40 फ़ीसदी जनसंख्या के पास ऐसी भाषा में शिक्षा ग्रहण करना संभव नहीं है जो वे बोलते या समझते हैं। कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि मातृभाषा पर पकड़ अन्य विषयों को सीखने में सहायक सिद्ध होती है।
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