पूंजीवादी व्यवस्था बड़ी बेरहम होती है। जो व्यक्ति अखबार के लिए चार दिनों तक भिखारी बना। अखबार ने उसे दो मिनट में सड़क पर ला दिया। फिलहाल कोरोना के बहाने पटना अखबारनवीसों के लिए कत्लगाह बना हुआ है। किसी को बिना कुछ बताए छंटनी कर दी जा रही है और किसी को सैलरी के हिसाब से चार साल पीछे धकेल दिया जा रहा है।
उपरोक्त पंक्ति पटना के वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर उपाध्याय की फेसबुक पोस्ट से ली गई है। मामले का लब्बोलुआब यह है कि पटना सहित पूरे देश हिंदुस्तान ग्रुप से टेबलायड साइज में छपने वाली अखबार स्मार्ट को बंद कर दिया है। सभी पत्रकारों को कंपनी ने छंटनी करते हुए नौकरी से निकालने का फैसला किया है।
पटना एडिशन में जिन जिन पत्रकारों को बाहर किया गया है उनमें मनीष मिश्रा नामक एक रिपोर्टर का नाम भी शमिल है, जिन्होंने एक्सक्लुसिव स्टोरी करने के लिए पटना महावीर मंदिर के बाहर चार दिन तक भिखारी बन बैठे रहे। अगले दिन उनकी स्टोरी बाय लाइन छापी गई।
आज जब उनको निकाल दिया गया है तो पटना के पत्रकार कह रहे हैं कि कभी बेचारा नकली भीखारी बना था आज सच में उसे भिखानी बना दिया गया है…
पटना एडिशन में जिन जिन पत्रकारों को बाहर किया गया है उनमें मनीष मिश्रा नामक एक रिपोर्टर का नाम भी शमिल है, जिन्होंने एक्सक्लुसिव स्टोरी करने के लिए पटना महावीर मंदिर के बाहर चार दिन तक भिखारी बन बैठे रहे। अगले दिन उनकी स्टोरी बाय लाइन छापी गई।
आज जब उनको निकाल दिया गया है तो पटना के पत्रकार कह रहे हैं कि कभी बेचारा नकली भीखारी बना था आज सच में उसे भिखानी बना दिया गया है…
आइये पढ़ते है मनीष मिश्रा की वह स्पेशल स्टोरी
यहां तो भीख भी मिलती है राजू डॉन की मर्जी से
आपने फिल्मों में भिखारियों के गिरोह के बारे में देखा होगा। पटना में भी एक ऐसा ही गिरोह काम कर रहा है। पटना में भीख मांगना एक कारोबार है, जिसका नेटवर्क बहुत मजबूत है। इस कारोबार में कई बड़े लोग भी शामिल हैं। इस गिरोह का सरगना कोई राजू नाम का व्यक्ति है, बिना उसकी मर्जी के कोई यहां भीख भी नहीं मांग सकता।
इस गिरोह का नेटवर्क राजधानी से लेकर प्रदेश के कई पर्यटन स्थलों तक फैला हुआ है। इनके निशाने पर गरीब मासूम बच्चे और बुजुर्ग होते हैं। बच्चों को नशे की लत लगवाकर इस धंधे में उतारा जाता है। वहीं लाचार, लावारिस बुजुर्गों को पैसे का लालच देकर यह काम करवाया जा रहा है।
इस गिरोह का नेटवर्क राजधानी से लेकर प्रदेश के कई पर्यटन स्थलों तक फैला हुआ है। इनके निशाने पर गरीब मासूम बच्चे और बुजुर्ग होते हैं। बच्चों को नशे की लत लगवाकर इस धंधे में उतारा जाता है। वहीं लाचार, लावारिस बुजुर्गों को पैसे का लालच देकर यह काम करवाया जा रहा है।
पटना में भिखारियों के बैठने की जगह तक आवंटित हैं। अगर कोई दूसरा उस जगह पर बैठता है तो उसे मारपीटकर भगा दिया जाता है या फिर गिरोह में शामिल कर लिया जाता है। गिरोह में शामिल होने का मतलब है कि कमाई का एक चौथाई देना।
भिखारियों का सच जानने के लिए हमारा रिपोर्टर खुद भिखारी बना। चार दिनों तक वह राजधानी के विभिन्न स्थानों पर घूमा। बाकायदा भिखारियों के साथ उन्हीं के वेश में बैठा। भीख मांगी। बावजूद इसके राजू की पहेली नहीं सुलझी। शायद इस रिपोर्ट के बाद पुलिस कुछ कर सके। हमारी पड़ताल में जो छुपा हुआ सच सामने आया वह हम सबके साथ साथ प्रशासन के लिए भी चुनौती से कम नहीं है।
भिखारियों का सच जानने के लिए हमारा रिपोर्टर खुद भिखारी बना। चार दिनों तक वह राजधानी के विभिन्न स्थानों पर घूमा। बाकायदा भिखारियों के साथ उन्हीं के वेश में बैठा। भीख मांगी। बावजूद इसके राजू की पहेली नहीं सुलझी। शायद इस रिपोर्ट के बाद पुलिस कुछ कर सके। हमारी पड़ताल में जो छुपा हुआ सच सामने आया वह हम सबके साथ साथ प्रशासन के लिए भी चुनौती से कम नहीं है।
ऐसे हुई पड़ताल :
हिन्दुस्तान स्मार्ट रिपोर्टर ने कई दिन भिखारियों की गतिविधियों पर नजर रखी। कुछ संदिग्ध चेहरे सामने आए जिसकी जानकारी सिर्फ भिखारी ही दे सकते थे। रिपोर्टर खुद महावीर मंदिर, कंकड़बाग साईं मंदिर, बांस घाट काली मंदिर से लेकर पटना की कई अन्य जगहों पर भिखारी बन कर बैठा। चार घंटे में जो खुलासा हुआ वह आपके सामने है।
यह है हकीकत :
रिपोर्टर महावीर मंदिर पर भिखारी बनकर पहुंचा। वह बुजुर्ग भिखारियों की कतार में जैसे ही बैठा एक भिखारी मारने को दौड़ा। इहां कैसे बैठे…चलो भागो। ई हमार जगह है। एक बुजुर्ग महिला को हिस्से का लालच दिया तब वह बैठाने को तैयार हो गई। देखिए बातचीत के कुछ अंश…
अम्मा, ये लोग हमें मारने के लिए क्यों आए? : यहां हर किसी की जगह बंटी हुई है। तुम उसकी जगह पर बैठे इसलिए वह मारने आया।
जगह बंटी हुई है? : हां, हर भिखारी अपनी जगह का कल्लू को पैसा देता है। अगर उसे पैसा दिए बिना बैठे तो यहां से मारपीट कर भगा दिया जाता है।
भिखारी से बात करने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह था कि आखिर कौन है राजू। इसकी तह तक जाने के लिए रिपोर्टर ने कल्लू को पकड़ा। कल्लू को सारा पैसा दे दिया और पूछा राजू कौन है। इसके बाद जो हकीकत सामने आई वह चौंकाने वाली थी।
कल्लू कभी मुंह न खोले इसलिए उसकी जबान काट दी गई है। जब दूसरे भिखारियों से पूछा गया कि राजू कौन है। तो सभी ने एक ही बात कही, उसे आज तक किसी ने नहीं देखा। हां, यहां पुलिस प्रशासन सब उसकी जेब में है। बिना उसके कोई भी भिखारी नहीं बैठ सकता।
कल्लू कभी मुंह न खोले इसलिए उसकी जबान काट दी गई है। जब दूसरे भिखारियों से पूछा गया कि राजू कौन है। तो सभी ने एक ही बात कही, उसे आज तक किसी ने नहीं देखा। हां, यहां पुलिस प्रशासन सब उसकी जेब में है। बिना उसके कोई भी भिखारी नहीं बैठ सकता।
कभी-कभी कुछ नए भिखारी वह लेकर यहां आता है। उसका बड़ा नेटवर्क है। गया, पुनपुन में जब मेला लगता है तो यहां से हम लोगों को वहां शिफ्ट कर दिया जाता है। महावीर मंदिर पर भिखारियों ने नशे का भी बड़ा जाल फैला हुआ है। यहां बैठने वाले अधिकतर भिखारी और बच्चे सुलेशन पीते हैं। यह आदत उन्हें पटना जंक्शन पर एक्टिव भिखारियों के गिरोह ने ही दी है।
छोटे-छोटे बच्चे भी पूरा दिन सुलेशन की महक से मदहोश रहते हैं और जो भी पैसा मिलता है वह आसानी से गैंग के गुर्गे को दे देते हैं। ये भिखारी भीख मांगने के अलावा नशे की पुड़िया के साथ सिगरेट में भरकर नशीला पदार्थ भी बेचते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि यह सारा खेल पुलिस के सामने होता है। बाकायदा यही भिखारी पुलिस से पकड़वा देने की धमकी तक देते हैं। कुल मिलाकर पूरे नेटवर्क में पुलिस की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
छोटे-छोटे बच्चे भी पूरा दिन सुलेशन की महक से मदहोश रहते हैं और जो भी पैसा मिलता है वह आसानी से गैंग के गुर्गे को दे देते हैं। ये भिखारी भीख मांगने के अलावा नशे की पुड़िया के साथ सिगरेट में भरकर नशीला पदार्थ भी बेचते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि यह सारा खेल पुलिस के सामने होता है। बाकायदा यही भिखारी पुलिस से पकड़वा देने की धमकी तक देते हैं। कुल मिलाकर पूरे नेटवर्क में पुलिस की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
यूं खुलते गए राज…रिपोर्टर ने महिला से जैसे-जैसे बात आगे बढ़ाई, उसने ऐसे राज खोले जिसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे।
नए हो का, पहले कहां भीख मांगते थे। ट्रेन में मांगा करते थे, वहां बहुत किचकिच था। वैसे पैसा किस बात का देना होता है? देखो वहां जो सामने बच्चे बैठे हैं और यहां जितने बुजुर्ग हैं। हम सब कल्लू को पैसा देते हैं, तभी यहां बैठते हैं।
पेश हेै रिपोर्टर से बातचीत के आगे के अंश…क्यों देते हैं?
नए हो का, पहले कहां भीख मांगते थे। ट्रेन में मांगा करते थे, वहां बहुत किचकिच था। वैसे पैसा किस बात का देना होता है? देखो वहां जो सामने बच्चे बैठे हैं और यहां जितने बुजुर्ग हैं। हम सब कल्लू को पैसा देते हैं, तभी यहां बैठते हैं।
बच्चे कहां से आए? ई सब गरीब लोगों के बच्चे हैं। कल्लू पहले इन्हें नशे की लत लगाया फिर अब भीख मंगवाता है। भीख मांगेंगे तभी तो नशा मिलेगा। कल्लू किसको पैसा देता है? कोई राजू डॉन है, आज तक उसे देखे तो नहीं लेकिन उसी को पैसा जाता है।
कितना पैसा देना होगा? जितना कमाओगे उसका चार हिस्सा देना पड़ेगा। अगर नहीं दिए तो?तो मार-मार के तुम्हें अधमरा कर देंगे। पुलिस भी पकड़कर ले जाएगी।
कितना पैसा देना होगा? जितना कमाओगे उसका चार हिस्सा देना पड़ेगा। अगर नहीं दिए तो?तो मार-मार के तुम्हें अधमरा कर देंगे। पुलिस भी पकड़कर ले जाएगी।
पुलिस सबको पकड़ेगी? सब मिला हुआ है। तुम्हें ही पकड़ेगी। हम सब इसी बात का तो पैसा देते हैं।कितना कमाई हो जाता है?मंगलवार और शनिवार को तो कभी-कभी 1000 रुपये भी पार कर जाता है। वैसे हर दिन 500-700 रुपए हो जाता है।कल्लू कैसे जानेगा कि कितना कमाए?उसकी नजर चील की तरह है। कटोरे में जैसे पैसा गिरेगा कल्लू अपना हिस्सा लेने पहुंच जाएगा।
आपका नाम क्या है?यहां किसी का नाम असली नहीं है। जो पूछोगे सब गलत ही बताएगा। तुम भीख मांगो, बाकी सब भूल जाओ।लखपति हैं भिखारी
इस पड़ताल में एक बात और खुलकर सामने आई। जिसे आप तरस खाकर भीख देते हैं, वह लखपति हैं। हर भिखारी की महीने भर की कमाई 15 से 20 हजार रुपये है। इस तरह एक साल की कमाई 2 से 2.5 लाख रुपए तक है।
बच्चे अपनी कमाई सारा पैसा नशे की लत में खर्च कर देते हैं। वहीं बुजुर्ग और महिलाएं अपना पैसा बचाने में विश्वास करती है। यही कारण है कि जब भी कोई संस्था इन भिखारियों को पुर्नस्थापन का प्रयास करती है तो ये भागकर वापस चले आते हैं।
बच्चे अपनी कमाई सारा पैसा नशे की लत में खर्च कर देते हैं। वहीं बुजुर्ग और महिलाएं अपना पैसा बचाने में विश्वास करती है। यही कारण है कि जब भी कोई संस्था इन भिखारियों को पुर्नस्थापन का प्रयास करती है तो ये भागकर वापस चले आते हैं।
पड़ताल में एक और खुलासा :
पटना जंक्शन ही पटना में जितने भी भिखारी हैं उनका असली नाम किसी को नहीं पता होता है। कोई कल्लू तो कोई लगड़ा तो कोई अन्य ऐसे नाम से जाना जाता है। इसके पीछे बड़ी वजह पुलिस की कार्रवाई से बचना होता है।
खोढ़े भिखारी ने बताया कि राजू को किसी ने नहीं देखा। गूंगा का नाम भी कोई नहीं जानता। बस सिस्टम बना है और लोगों से वह वसूली कर लेता है। उसका कहना है कि यहा आने वालों का नाम बदल जाता है कोई भी अपने असली नाम को नहीं बताता, वह हर पहचान छिपाने की कोशिश करता है।
50 रुपये की एक सिगरेट :
रिपोर्टर जब बांस घाट स्थित काली मंदिर पहुंचा तो वहां एक भिखारी मिला। वह भिखारी के वेष में नशीले पदार्थ का कारोबारी हैं। पास बैठते ही उसने एक बड़ी सी सिगरेट की स्टिक निकाली और उसमें सफेद रंग के पदार्थ के साथ जर्दा के जैसा कोई मसाला मिलाकर भर दिया। इसके बाद रिपोर्टर की तरफ बढ़ाते हुए कहा 50 रुपये दो और कश लगाओ।
रिपोर्टर ने पैसा नहीं होने की बात कह मना कर दिया। कंकड़बाग साईं मंदिर के पास भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। यहां भिखारियों में बच्चों की संख्या अधिक थी। अधिकतर सुलेशन के नशे में झूम रहे थे।
घातक है पुलिस की चूक :
महावीर मंदिर के पास पुलिस की चौकसी होती है। यहां पुलिस का बूथ भी है, लेकिन संदिग्धों की पड़ताल के नाम पर कुछ नहीं। रिपोर्टर भिखारी के रूप में कई दिनों तक पटना जंक्शन, बांस घाट काली मंदिर और कंकड़बाग के साथ अन्य सार्वजनिक स्थानों पर घूमा, पर कोई ट्रेस करने वाला नहीं था।
पटना जंक्शन के पास से एक पखवारा पूर्व दो बंग्लादेशी आतंकी पकड़े गए थे। इसके बाद क्षेत्र और संवेदनशील हो गया है। इसके बाद भी पुलिस वालों ने न तो रिपोर्टर को रोका और न ही कोई जांच ही की।
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