मीडिया संस्थानों को पत्रकार नहीं गुलाम चाहिए, उन्हें सवाल-जवाब करने वाले इंसान नहीं बल्कि हुक्म मानने वाले रोबोट पसंद हैं। हजारों लोग सिर्फ नौकरी बचाने के लिए 'बंधुआ मजदूरी' कर रहे हैं। लेकिन मैं उनमें से एक नहीं हूं इसलिए फिलहाल के लिए संस्थागत पत्रकारिता से विराम ले रहा हूँ।

उक्त शब्द हैं बिहार के युवा पत्रकार और रिपोर्टर उत्कर्ष सिंह के, उन्होंने कुछ दिन पहले ही खुलासा किया था कि ABP News में उनका शोषण किया जा रहा था और नौकरी छोड़ने के दौरान उन्हें मैनेजमेंट ने करियर बर्बाद कर देने की धमकी भी दी थी.

सार्वजानिक हुआ स्क्रीनशॉट:


अब इस मामले का पूरा उद्भेदन हो गया है. उत्कर्ष ने ट्वीट करते हुए लिखा है "वैसे तो मैं ये कभी करना नहीं चाहता था लेकिन अब जब स्क्रीनशॉट सामने आ चुके हैं, तो ये साफ कर दूं कि मैंने ABP News नहीं छोड़ा बल्कि मुझसे इस्तीफा मांगा गया था जिसका कारण official group में भेजा ये मैसेज है। मैं जिस मनोस्थिति में था, मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था."
स्क्रीनशॉट क्रमांक: 1
स्क्रीनशॉट क्रमांक 2
स्क्रीनशॉट क्रमांक 3


सर, वेब टीम से बात करना गुनाह है क्या? मुझे पता है कि चैनल में सारी चीजें डेस्क से होकर ही पूरी चाहिए, लेकिन बिना किसी को बाईपास किए वेब टीम तक अपनी बात पहुंचाने में क्या अपराध है? एक रिपोर्टर क्या अपनी खबरों के लिए वेब टीम से बात भी नहीं कर सकता? वो भी तब जब असाइनमेंट डेस्क पर लोग व्यक्तिगत खुन्नस में खबरें/वेब कॉपी नहीं बढ़ाते और शिकायत करने पर इनपुट हेड बोलते हैं कि 'अपने लेवल में रहो, मैं हर रिपोर्टर से बात नहीं कर सकता। तुम लोगों से बात कर लेता हूँ, यही एहसान करता हूँ।'

क्या आपको लगता है कि एक वेब कॉपी लग जाने से या फिर कोई वीडियो वेब पर डल जाने से मेरा कोई निजी फायदा हो जाता है? नहीं, इससे चैनल के आउटपुट में ही थोड़ा-बहुत add-on होता होगा। आपने कहा कि बाकी लोग भी काम करते हैं, बाकी लोग तो नहीं बोलते। तो, उससे मेरा क्‍या लेना-देना? बाकी लोग क्या करते हैं, क्या नहीं करते, मैं उसका जवाबदेह नहीं हूं।

बाकी लोग अपनी खबरों के लिए नहीं लड़ते होंगे, मैं लड़ता हूँ, रिक्वेस्ट करता हूँ, कई बार हाथ-पैर तक जोड़े हैं, हो सकता है आपकी नज़र में ये बदतमीजी हो लेकिन मेरे लिए यही मेरा काम है। ऐसे काम का क्‍या फायदा जो दिखे ही न? मैं तो टीवी पर दिखने की उम्मीद तक छोड़ चुका हूं इसीलिए कोशिश करता हूँ कि जो भी काम करूँ, कम से कम वेब पर चल जाए, क्या ये सोच रखना भी बहुत ज्यादा है?

सबको पता है कि ऑफिस में बैठे कुछ पावरफुल लोग व्यक्तिगत खुत्नस में अपनी ताकत का पूरा इस्तेमाल कर मुझे खत्म कर चाहते हैं, सच बताऊं तो मैं हो भी रहा हूँ। जब बिहार का रिपोर्टर दिल्‍ली की खबर डाले तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होती, जब एक ही जगह से एक ही खबर... दो रिपोर्टर डालें तो दोनों लग जाती हैं, लेकिन जब मैं ऐसी कोई खबर भेजूं जिसकी किसी ने दूसरी कॉपी नहीं भेजी, वो रोक दी जाती है, क्यों? जो भी काम करता हूँ, एक नया नियम-कायदा मेरे सामने ला दिया जाता है, फिर भी मैं सारे नियम फॉलो करने की कोशिश करता हूँ। लेकिन क्या सारे नियम-कायदे सिर्फ मेरे लिए हैं?


अपने स्टोरी आइडिया को डिफेंड करो तो कहा जाता है कि बहस कर रहे हो, जब रिसर्च करके स्टोरी आइडिया लाओ तो बोला जाता है कि और रिसर्च करो, कितना रिसर्च करें, सिर्फ रिसर्च ही करना होता है या स्टोरी भी करनी होती है?

लेकिन अगर अपनी ओर से कुछ बोल दो कहा जाता है कि बड़ा बदतमीज है, जबान लड़ा रहा है। तो क्या करें सर, बोलना छोड़ दें? गूंगे हो जाएं? माफ करिएगा सर, लेकिन मुझसे ये नहीं हो सकता। हैरानी होती है कि कम्युनिकेशन फील्ड में कम्युनिकेशन करने पर ही तमाम पाबंदी लगाई
जा रही है।

आप लोग इतने सीनियर हैं कि रिपोर्टर्स से बात तक नहीं करते, कॉल करो तो रिसीव नहीं होता, मैसेज का जवाब नहीं आता, मेल पर रिप्लाई नहीं मिलता लेकिन कोई कुछ नहीं बोल सकता क्योंकि सबको अपनी नौकरी की पर है। आपने अभी कॉल करके जितना सुनाना था, सुना दिया लेकिन जब मैंने बोलना शुरू किया तो आपको वो बहस लगने लगा।

मैंने तो यही पढ़ा था सर कि two way communication सबसे इफेक्टिवcommunication होता है. लेकिन शायद वो किताबों के लिए ही बना है क्योंकि यहां तो किसी को सुननी ही नहीं है, सिर्फ अपनी कहनी है। मुझे बिना किसी ठोस कारण बिहार से वापस बुला लिया गया और मेरे ऊपर पाबंदी लगा दी गई कि मैं बिहार का कोई आइडिया नहीं दे सकता। क्‍यों?

क्या मैं वहां वांटेड हूँ, चोरी की है? डाका डाला है? क्या किया है मैंने वहां? बहुत सारे सवाल हैं जिन्हें मैंने अपने अंदर रखा हुआ है जिसका शायद किसी के पास कोई जवाब नहीं है। ये सबकुछ होते शायद किसी के पास कोई जवाब नहीं है। ये सबकुछ होते हुए भी मुझे जो काम दिया जाता है, पूरी मेहनत, लगन और से करने की कोशिश करता हूँ। ऑफिस में बैठे लोगों को नहीं पता कि किस तरह से भूखे पेट रहकर काम करना पड़ता है, बाकियों का नहीं पता लेकिन मैं पहले काम करता हूँ उसके बाद ही किसी दूसरी चीज के बारे में सोचता हूँ. लेकिन आप लोगों को तो इस बात से परेशानी है कि रिपोर्टर ने वेब टीम से कैसे बात कर ली?

मुझे पता है कि इस मैसेज के बाद मुझे चैनल से निकाला भी जा सकता है, मैं उसके लिए भी तैयार हूं क्योंकि मैं चैनल में एक एम्प्लॉई की तरह काम करना चाहता हूं, बंधुआ मजदूर और गुलाम की तरह नहीं।

बिना किसी अनादर के pankaj jha सर (सीनियर एडिटर (नेशनल और पॉलिटिकल अफेयर्स)
                                                                                     

साभार @utkarshsingh_ ट्विटर अकाउंट 

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